क्रोध व प्रेम की कहानी/story of love & anger/ spiritual reality/
एक समय की बात है, हर सुबह एक साधु नदी के तट पर बहुत देर तक गालियां बकता रहा | जब गालियां बकते -बकते थक गया तो अपने आश्रम चला गया | अगले दिन फिर सुबह वही सिलसिला जारी रहा, लोग हैरान थे कि यह कैसा साधु है जो की भगवान् के भजन के बजाय गालियों के प्रवचन करता है | उसके आश्रम से थोड़ी ही दूर पर एक और कुटिया बनी हुई थी , उसमें एक महात्मा रहते थे | पता चला की वह साधु उन्हीं पर गालियों की बारिश करता था | वे महात्मा अपने ध्यान में लीन रहते थे और गालियां सुनकर भी क्रोधित नहीं होते थे |
एक दिन सुबह एक युवा साधक आया और साधु के पास गया और उनको एक फलो की टोकरी देने लगा | साधु ने साधक से फल देने वाले का विवरण पूछा | विवरण सुनते ही वह साधु फिर से गालियां देना लगा | यह सुनकर वह साधक वापस चला गया | कुछ देर बाद वह साधक फिर वापस आया और बोला महाराज उन्होंने – बोला है की आप रोजाना जो अमृतवाणी करके अपनी शक्ति बर्बाद करते है ,उसको बनाये रखने के लिए खाना बहुत ही जरूरी है |
वह साधु बोला उन्होंने मेरे लिए यह बोला है , में अमृत वर्षा नहीं , गलियो की वर्षा करता है | यह फल वो मेरे लिए तो भेज ही नहीं सकते , तुम को कोई भ्रम हो गया होगा |
युवा साधक यह सुनकर बोला – महाराज यह फल उन्होंने ने ही आप के लिए भेजा है | आप महर्षि दयानंद सरस्वती के स्व्भाव से परिचित नहीं है , वे क्रोध का बदला प्यार से लेते है | इसलिए आप इसको स्वीकार करे |
वह साधु यह सुनकर दंग रह गया और बोला जिस महर्षि दयानंद के निंदा को में अपना धर्म मानता था वो इतना क्षमाशील है | यह कहते वह दूसरे कुटिया में गया और महर्षि दयानंद के पैरो में लेट गया और उनसे माफी मांगने लगा |
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