केवलराम के गाँव के बाहर एक विशाल जंगल था और उसी जंगल से होकर ही कहीं आया व जाया जा सकता था। केवलराम जिस रास्ते से अपने घर आता जाता था, उसी रास्ते पर उसके परम मित्र की दुकान थी और वह अपनी किसी भी तरह की समस्या को उसी के साथ सांझा किया करता था।
एक दिन केवलराम की दुकान के सामने एक आदमी की दुर्घटना से मृत्यु हो गई। इस बात से केवलराम बहुत परेशान था इसलिए उस शाम अपने घर लौटते समय केवलराम अपने मित्र की दुकान पर गया और उसकी दुकान के सामने हुई दुर्घटना के बारे में बताते हुए कहा, ”अगर किसी दिन मुझे कुछ हो गया, तो मेरे परिवार वालों का पालन-पोषण कैसे होगा?”
सके मित्र ने जवाब दिया, ”तुम इस बात की चिंता मत करो कि तुम्हारे बिना तुम्हारा परिवार कैसे चलेगा। तुम रहो या नहीं, लेकिन तुम्हारा परिवार और ये समाज निरंतर चलता रहेगा।”
केवलराम को उसके मित्र का जवाब कुछ जचा नहीं और इस बात को भांपते हुए उसके मित्र ने कहा कि “तुम कुछ दिनों के लिए मेरे पास ही रूक जाओ। कुछ दिनों बाद अपने घर चले जाना और देख लेना कि तुम्हारे बिना भी तुम्हारा परिवार व्यवस्थित रूप से चलता है या नहीं।“
केवलराम को मित्र का सुझाव अच्छा लगा और वह अपने मित्र के यहां ही कुछ दिनों के लिए ठहर गया जबकि केवलराम के मित्र ने गाँव में आकर लोगों से कह दिया कि जब केवलराम जब घर आ रहे थे, तो उन पर शेर ने हमला कर दिया, जिससे केवलराम की मृत्यु हो गई।”
केवलराम के मित्र की ये बात सुनकर केवलराम के घर पर मातम पसर गया और पूरा परिवार रोने-बिलखने लगा। एक हफ्ते तक परिवार वाले सदमें में रहे कि अचानक केवलराम की मृत्यु कैसे हो गई। लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ पहले जैसा ही सामान्य होने लगा। केवलराम के बड़े लड़के ने अपने पिता की दुकान संभाल ली और उसका छोटा लड़का फिर से अपनी पढ़ाई में लग गया तथा उसकी लड़की का विवाह एक अच्छे घराने में तय हो गया।
जब सबकुछ पहले जैसा हो गया तब केवलराम के मित्र ने केवलराम को उसके घर जाने के लिए कहा।
केवलराम अपने घर पहंचा तो उसने देखा कि जैसे वो अपने परिवार का भरन-पोषण कर रहा था, ठीक उसी प्रकार से अभी भी उसके परिवार का भरन-पोषण हो रहा था। अपने परिवार का पहले जैसा ही जीवनयापन देख केवलराम की सारी चिंता समाप्त हो गई और उसे अपने मित्र की वह बात याद आ गई कि चाहे वह रहे या न रहे, उसके परिवार का भरण-पोषण होता रहेगा।
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