स्वामी रामतीर्थ अमेरिका पहुँचे; सेनफ्रांसिस्को बन्दरगाह पर जलयान ठहरा। सब यात्री उतरने की तैयारी करने लगे। पर स्वामी राम मस्ती से इधर-उधर डेक पर टहल रहे थे।
इस विचित्र मस्ती को देख कर एक अमेरिकन ने आश्चर्य से पूछा—श्रीमान, आपका सामान कहाँ है?
स्वामी राम ने कहा—जो शरीर पर है उतना ही मेरा सामान है और कुछ मेरे पास नहीं।
अमेरिका जैसे महंगे और व्यस्त देश में बिना धन, और सामान के कोई परदेशी व्यक्ति किस प्रकार रह सकता है? यह असम्भव जैसी बात देखकर जब अमेरिकन ने फिर पूछा—”तब क्या यहाँ कोई आपका घनिष्ठ मित्र या संबंधी रहता है?”
स्वामी राम ने पूछने वाले के कन्धे पर हाथ रखकर कहा-सारे अमेरिका में मेरा एक ही मित्र है—और वह हो तुम।
इस आत्मीयता का उस अमेरिकन पर जादू जैसा असर पड़ा और वह सचमुच ही उनका सच्चा मित्र बन गया। अमेरिका यात्रा में उनने स्वामी जी की भारी सहायता की।
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