बसंतपुर नगर में धर्मचंद नाम का एक जौहरी रहता था। उसकी जेवरात की दुकान थी और इसी सिलसिले में वह हीरे-जवाहरात खरीदने दूर-दूर के नगरों में जाया करता था।
एक बार वह एक कीमती हीरा खरीदकर लौट रहा था। लौटते-लौटते शाम हो गई और मौसम खराब होने की वजह से तेज वर्षा होने लगी। इसलिए वह व्यापारी एक सराय में रूक गया।
वहाँ उसे एक व्यक्ति मिला, जिसने अपना परिचय देते हुए वह कहा, “मेरा नाम राजेन्द्र है। मैं एक व्यापारी हूँ और इसी सिलसिले में समस्तीपुर जा रहा हूँ। आप कहाँ जा रहे हैं?“
धर्मचंद ने अपना परिचय दिया तो राजेन्द्र बोला, “आपका नगर थोड़ा पहले पड़ जाता है, तो क्या मैं आपके साथ रूक सकता हूँ? मौसम ठीक होते ही हम साथ-साथ निकल जाऐंगे जिससे हम दोनों का रास्ता आसानी से कट जाएगा?“
धर्मचंद ने कहा, “ठीक है?“
सुबह तक मौसम बिल्कुल ठीक हो गया और दोनों अपने-अपने गंतव्य स्थान पर जाने के लिए चलने लगे तभी राजेन्द्र ने धर्मचंद से कहा, “मैंने आपसे झूठ कहा कि मैं एक व्यापारी हूँ। असल में, मैं एक ठग हूँ और जहाँ से आपने हीरा खरीदा है, वहीं से वह हीरा चुराने की नीयत से मैं आपका पीछा कर रहा हूँ।“
राजेन्द्र ने सच्चाई बताकर पूछा, “दिन में तो मैंने आपको अपने कुर्ते की जेब में हीरा रखते देखा था लेकिन रात में मैंने न केवल आपके कुर्ते की जेब को बल्कि आपके एक-एक सामान को टटोल लिया लेकिन मुझे वह हीरा कहीं भी नहीं मिला। अब मुझे आपका हीरा नहीं चाहिए। मुझे केवल इतना बता दीजिए कि आपने वह हीरा कहाँ छुपाया था जिससे मैं उसे ढूंढ नहीं सका।“
धर्मचन्द ने प्रत्युत्तर दिया, “मुझे इस बात का अंदेशा हो गया था कि कोई मेरा पीछा कर रहा है और जब तुमने मेरे साथ रात ठहरने की बात पूछी तब मेरा शक यकीन में बदल गया, इसलिए मैंने रात में वह हीरा तुम्हारी ही जेब में रख दिया था और सुबह तुम्हारे जागने से पहले ही पुन: ले लिया।”
राजेन्द्र आश्चर्य से जौहरी धर्मचंद का मुंह देखता रह गया और धर्मचंद इतना कहकर मुस्कुराते हुए अपने रास्ते चल दिया।
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