भेड़िया आया...भेड़िया आया
एक लड़का रोज जंगल में भेड़ें चराने के लिए जाता था। वह बड़ा शैतान था।
अपनी शैतानियों द्वारा दूसरों को परेशान करने में उसे बड़ा मजा आता था। मगर जंगल में अकेला होने के कारण वह उकता जाता था। यहां किसे और कैसे परेशान करे, यही सोचता रहता था। जंगल से लगते कुछ किसानों के खेत थे। वे सुबह-सुबह आकर अपने खेतों में काम करने में जुट जाते थे।
एक दिन उसने किसानों के साथ शैतानी करने की सूझी।
वह सोचने लगा कि ऐसा क्या किया जाए कि सारे किसान परेशान हो जाएं।
अचानक उसके दिमाग में एक खुराफात आ ही गई।
वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा, ‘‘बचाओ, बचाओ ! भेड़िया आया...भेड़िया आया !’’
किसानों ने लड़के की आवाज सुनी तो वे अपना-अपना काम छोड़कर लड़के की मदद के लिए दौड़ पड़े। जो भी हाथ लगा, साथ ले आए। कोई फावड़ा ले आया, कोई दरांती, तो कोई हंसिया। मगर जब वे लड़के के पास पहुंचे तो, उन्हें कहीं भेड़िया दिखाई नहीं दिया।
किसानों ने लड़के से पूछा, ‘‘कहाँ है भेड़िया ?’’
उनका सवाल सुनकर लड़का हंस पड़ा और बोला—‘‘मैं तो मजाक कर रहा था भेड़िया आया ही नहीं था। जाओ....तुम लोग जाओ।’’
किसान लड़के को डांट-फटकार कर लौट आए।
उनके जाने के बाद वह अपने आपसे बोला—‘वाह ! कैसा बेवकूफ बनाया। मजा आ गया।’
कुछ दिनों बाद लड़के ने फिर ऐसा ही किया। आसपास के किसान फिर मदद के लिए दौड़ आए। लड़का फिर हंसकर बोला, ‘‘मैं मजाक कर रहा था। आप लोगों के पास कोई और काम नहीं है जो मामूली – सी चीख-पुकार सुनकर दौड़े चले आते हो।’’
किसानों को बड़ा गुस्सा आया एक बार फिर उन्होंने उसे डांट-फटकार लगाई।
मगर ढीठ लड़का हंसता रहा।
लेकिन अब किसानों ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि इस लड़के की मदद को कभी नहीं आएंगे।
कुछ समय बाद एक दिन सचमुच ही भेड़िया आ पहुंचा। लड़का दौड़कर एक पेड़ पर चढ़ गया और मदद के लिए चिल्लाने लगा। इस बार उसकी मदद के लिए कोई नहीं आया।
सभी ने यही सोचा कि वह बदमाश लड़का पहले की तरह मजाक कर रहा है।
भेड़िये ने कई भेड़ों को मार डाला। इससे लड़के को अपने किए पर दुख हुआ।
शिक्षा—झूठ बोलने वालों पर कोई विश्वास नहीं करता।
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गुफा की आवाज
एक बूढ़ा शेर जंगल में मारा-मारा फिर रहा था। कई दिनों से उसे खाना नसीब नहीं हुआ था। दरअसल बुढ़ापे के कारण वह शिकार नहीं कर पाता था। छोटे-छोटे जानवर भी उसे चकमा देकर भाग जाते थे। वह भटकते-भटकते काफी थक गया तो एक स्थान पर रुककर सोचने लगा कि क्या करूं ? किधर जाऊं ? कैसे बुजाऊं इस पेट की आग ? काश ! मैं भी दूसरे शाकाहारी जानवरों की भांति घास-पात, फल-फूल खा लेने वाला होता तो आज मुझे इस प्रकार भूखों न मरना पड़ता।
अचानक उसकी नजर एक गुफा पर पड़ी। उसने सोचा कि इस गुफा में अवश्य ही कोई जंगली जानवर रहता होगा। मैं इस गुफा के अन्दर बैठ जाता हूं, जैसे ही वह जानवर आएगा, मैं उसे खाकर अपना पेट भर लूंगा। शेर उस गुफा के अंदर जाकर बैठ गया और अपने शिकार की प्रतीक्षा करने लगा।
वह गुफा एक गीदड़ की थी। गीदड़ ने गुफा के करीब आते ही गुफा में शेर के पंजों के निशान देखे तो वह फौरन खतरा भांप गया। परंतु सामने संकट देखकर उसने अपना संयम नहीं खोया बल्कि उसकी बुद्धि तेजी से काम करने लगी कि इस शत्रु से कैसे बचा जाए ?
और फिर उसकी बुद्धि में नई बात आ ही गई, वह गुफा के द्वार पर खड़ा होकर बोला--‘‘ओ गुफा ! गुफा ।’’
जब अंदर से गुफा ने कोई उत्तर न दिया, तो गीदड़ एक बार फिर बोला—‘‘सुन री गुफा ! तेरी मेरी यह संधि है कि मैं बाहर से आऊंगा तो तेरा नाम लेकर तुझे बुलाऊंगा, जिस दिन तुम मेरी बात का उत्तर नहीं दोगी मैं तुझे छोड़कर किसी दूसरी गुफा में रहने चला जाऊंगा।’’
जवाब न मिलता देख गीदड़-बार-बार अपनी बात दोहराने लगा।
अन्दर बैठे शेर ने गीदड़ के मुंह से यह बात सुनी, तो वह यह समझ बैठा कि गुफा गीदड़ के आने पर जरूर बोलती होगी। अतः अपनी आवाज को भरसक मधुर बनाकर वह बोला—‘‘अरे आओ—आओ गीदड़ भाई। स्वागत है।’’
‘‘अरे शेर मामा ! तुम हो। बुढ़ापे में तुम्हारी बुद्धि इतना भी नहीं सोच पा रही कि गुफाएं कभी नहीं बोलतीं।
कहकर वह तेजी से पलटकर भागा। शेर ने उसे पकड़ने के लिए गुफा से बाहर अवश्य आया किंतु तब तक वह गीदड़ नौ दो ग्याह हो चुका था।
शिक्षा—संकट के समय में भी बुद्धि का दामन नहीं छोड़ना चाहिए।
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